दिल्ली में हिचकोले खाती केजरीवाल की चुनावी नैया

अगले साल की पहली तिमाही में विधानसभा के चुनाव हेतु सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के साथ ही कांग्रेस और भाजपा की भी अपनी तैयारियां चरम पर पहुंच चुकी हैं और यह तो तय है कि आम आदमी पार्टी ने 2015 एवं 2020 में संपन्न विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत हासिल कर जो इतिहास रचा था उसे आगामी विधानसभा चुनावों में भी दोहराने के लिए वह कोई कसर बाकी नहीं रखेगी है लेकिन वह खुद भी इस हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ है कि दिल्ली में इस समय जो राजनीतिक माहौल है वह पिछले दो‌ विधानसभा चुनावों से काफी अलग है। इन चुनावों में एक ओर जहां उसे भाजपा कड़ी चुनौती देने के लिए कमर कसकर तैयार हो चुकी है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस उसकी चुनावी संभावनाओं को धूमिल करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है । गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही यद्यपि विपक्षी इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं परन्तु दिल्ली विधानसभा की सभी 70 पर दोनों दल अपने अलग-अलग उम्मीदवार खड़े करने का फैसला कर चुके हैं।भाजपा के लिए यह स्थिति निश्चित रूप से फायदेमंद है जिसने दिल्ली विधानसभा के आगामी चुनावों में उसकी जीत की संभावनाओं को निश्चित रूप से बलवती बना दिया है। गौरतलब है कि पंजाब और हरियाणा विधानसभा के चुनावों में भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने कोई गठजोड़ नहीं किया था। पंजाब में तो आम आदमी पार्टी एक तरफा जीत हासिल कर सरकार बनाने में कामयाब हो गई परन्तु हरियाणा में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार खड़े हो जाने से कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को इस कदर प्रभावित किया कि सत्ता में वापसी की आस लगाए बैठी कांग्रेस को दस साल बाद भी सदन के अंदर विपक्ष में बैठने पर मजबूर होना पड़ा ।यह निःसंदेह आश्चर्यजनक है कि दोनों पार्टियां हरियाणा के चुनाव परिणामों से कोई सबक लेने के लिए तैयार नहीं हैं । यह हकीकत दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के द्वारा एक दूसरे के खिलाफ जारी बयानबाजी से उजागर हो चुकी है। पिछले काफी समय से दोनों पार्टियों के नेता एक दूसरे के खिलाफ जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं उससे तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे उनकी भाजपा से कोई प्रतिद्वंदिता नहीं है। जाहिर सी बात है कि दोनों पार्टियों की आपसी लड़ाई दिल्ली में भाजपा की ही जीत का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। गौरतलब है कि गत लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सात सीटों के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने चुनावी समझौता किया था परन्तु सात में से एक भी सीट पर आम आदमी पार्टी अथवा कांग्रेस को जीत का स्वाद चखने को नहीं मिला और तभी से उनके बीच दूरियां बनने का सिलसिला शुरू हो गया था जो यहां तक आ पहुंचा कि दिल्ली विधानसभा की सभी 70 सीटों पर दोनों पार्टियों ने अपने अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी । आम आदमी पार्टी ने 2015 में उसने 70 में से 67 सीटों पर और 2020 में उसने 70 में से 62 सीटों पर शानदार जीत हासिल की थी लेकिन अगर कांग्रेस दिल्ली विधानसभा की सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने का फैसला कर चुकी है तो उसका यह साहस निःसंदेह आश्चर्यजनक है क्योंकि दिल्ली विधानसभा के लिए 2015 और 2020 में संपन्न चुनावों में उसे 70 में से एक भी सीट परंतु जीत का स्वाद चखने को नहीं मिला था। इस सबके बावजूद कांग्रेस जो चुनावी रणनीति अपना रही है उसे देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी दिलचस्पी अपनी चुनावी संभावनाओं को बेहतर बनाने में नहीं बल्कि आप की संभावनाओं को धूमिल करने में है। दरअसल दिल्ली में असली मुकाबला आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच ही होने जा रही है। कांग्रेस पार्टी तो आप के विरुद्ध नित नयी बयानबाजी करके चुनाव में बस अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है और कांग्रेस नेताओं के द्वारा की जा रही बयानबाजी से आप इस कदर उत्तेजित हो उठी है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना और आप सांसद संजय सिंह ने कांग्रेस पर भाजपा के साथ मिली भगत का आरोप लगाने में भी कोई संकोच नहीं किया। संजय सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि दिल्ली विधानसभा के लिए कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची देखकर ऐसा लगता है कि उसके पीछे भाजपा की मदद करने की मंशा है। आप ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध लगाए गए आरोपों पर सख्त नाराजगी जताते हुए इंडिया गठबंधन से कांग्रेस के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की है। गौरतलब है कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने भी आप सरकार पर दिल्ली की जनता से वादा खिलाफी का आरोप लगाया है। आगामी विधानसभा चुनावों में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने संदीप दीक्षित को उम्मीदवार घोषित किया है जहां उनका मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से होने जा रहा है। आप को यह चिंता सता रही है कि आगामी चुनावों में कांग्रेस अगर मुस्लिम, दलित और पूर्वांचल के मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल हो जाती है तो चुनावी संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है। दिल्ली विधानसभा के आगामी चुनाव हेतु भाजपा संभवतः वही रणनीति अपना सकती है जो गत वर्ष संपन्न मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनावों में बेहद कारगर साबित हो चुकी है। दिल्ली में भी उसी रणनीति को अमल में लाते हुए भाजपा अगर राष्ट्रीय स्तर के दिग्गजों को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला करती है तो उसमें अचरज की कोई बात नहीं होगी। ऐसे दिग्गजों में पूर्व केंद्रीय मंत्री डा हर्षवर्धन के अलावा पूर्व सांसद रमेश विधूड़ी और प्रवेश वर्मा के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। भाजपा ने विगत दिनों," घोटाले पर घोटाला, केजरीवाल ने दिल्ली को बनाया भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला " शीर्षक से आम आदमी पार्टी के विरुद्ध जो आरोप पत्र जारी किया है उसके माध्यम से दिल्ली के मतदाताओं को आकर्षित करने में उसे सफलता मिली है। इस आरोप पत्र में जो आरोप केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर लगाए गए हैं वही आरोप कांग्रेस द्वारा भी लगाए जा रहे हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इन चुनावों के लिए भाजपा ने जिस जोर शोर के साथ तैयारियां की हैं उसने अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की चिंताओं में इजाफा कर दिया है। उधर कांग्रेस पार्टी को पूरी उम्मीद है कि वह दिल्ली विधानसभा के आगामी चुनावों में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति निर्मित करने में सफल हो जाएगी। कुल मिलाकर यह कहना ग़लत नहीं होगा कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस बार अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की राह आसान नहीं है। केजरीवाल इस हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ हैं।

कृष्णमोहन झा