मध्यप्रदेश सरकार ने भोपाल से यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर भेजने का फैसला यद्यपि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के निर्देश पर किया था परन्तु जब राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले का सम्मान करते हुए उस पर विधिवत अमल की कार्रवाई शुरू की तो स्थानीय जनता के द्वारा किए जा रहे उग्र विरोध ने सरकार के लिए असमंजस की स्थिति निर्मित कर दी है। यहां यह विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड परिसर से कचरा उठवाकर उसे पीथमपुर भेजने का काम राज्य सरकार केवल हाईकोर्ट के निर्देश पर कर रही है जिसके लिए हाईकोर्ट ने एक समय सीमा भी निर्धारित कर दी थी परन्तु पीतमपुर में कुछ दिनों से जिस तरह विरोध का वातावरण बना हुआ है उसे सौहार्द्र पूर्ण तरीके से बातचीत के माध्यम से हल करने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जो पहला की है उसके लिए वे साधुवाद के हकदार हैं । मुख्यमंत्री ने इस मामले में पीतमपुर की जनता के प्रति संवेदनशीलता प्रदर्शित की है वह निश्चित रूप से पीथमपुर की स्थानीय आबादी को यह विश्वास दिलाने में कारगर साबित हो सकती है कि पीतमपुर में यूनियन कार्बाइड के कचरे का निष्पादन की प्रक्रिया पूरी तरह निरापद होगी । गौरतलब है कि पीतमपुर में सभी वर्गों के लोगों ने जिस तरह एक जुट होकर अपना विरोध जताया उसकी पल-पल की जानकारी भोपाल में मुख्यमंत्री मोहन यादव ले रहे थे और उन्होंने अपनी सरकार के वरिष्ठ मंत्री एवं इंदौर के प्रभावशाली विधायक कैलाश विजयवर्गीय को स्थानीय जनता को समझा-बुझाकर कर उनके आक्रोश को शांत करने की जिम्मेदारी सौंपी परंतु जब उन्हें भी इस काम में पर्याप्त सफलता नहीं मिली तो आनन-फानन में मुख्यमंत्री ने भोपाल में उच्च स्तरीय बैठक आमंत्रित की जिसमें उपमुख्यमंत्री द्वय राकेश शुक्ला, जगदीश देवड़ा, वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय , मुख्य सचिव अनुराग जैन , वरिष्ठ विधिवेत्ता , वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों के साथ इस विषय में गहन मंत्रणा की गई। इस अवसर पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि राज्य सरकार दृढ़ता पूर्वक जनता के साथ खड़ी है और उसकी सुरक्षा के प्रति पूरी सचेत हैं । भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड परिसर से पीथमपुर तक कचरे का परिवहन माननीय न्यायालय के आदेश के अनुरूप सुरक्षा मापदंडों का पूरी रह परिपालन करते हुए किया गया है। मुख्यमंत्री ने इस बात को रेखांकित किया कि जनता के मन में यदि कोई खतरे या डर का भाव आया तो सरकार इस विषय को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगी और इस मामले में माननीय न्यायालय जैसा आदेश देगा उसके पालन के लिए हम तत्पर रहेंगे। मुख्यमंत्री के बयान से स्पष्ट है कि सरकार को पीथमपुर के लोगों के हितों का पूरा ध्यान है। मुख्यमंत्री ने पीथमपुर में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि चालीस साल पहले कांग्रेस के शासनकाल में ही भोपाल में यह भयावह त्रासदी हुई थी। कांग्रेस ने यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निपटान के लिए कोई कार्रवाई नहीं की और अब वह माननीय न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में सरकार द्वारा सुरक्षा मापदंडों को ध्यान में रखकर की जा रही कार्रवाई पर सवाल उठा रही है। यूनियन कार्बाइड के कचरे के निपटान के लिए पीथमपुर के चयन और जनस्वास्थ्य पर उसके कथित हानिकारक प्रभावों को लेकर जो गंभीर आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं उनसे मुख्य सचिव अनुराग जैन असहमति जताते हुए कहा है कि हर राज्य में एक हैजर्डस् वेस्ट डिस्पोजल फेसिलिटी है । मध्यप्रदेश में यह पीथमपुर में है। 2013 और 2015 में भी पीथमपुर में इसी तरह का कचरा जलाया जा चुका है जिसका कोई हानिकारक प्रभाव परिलक्षित नहीं हुआ। मुख्य सचिव ने कचरे के निष्पादन से कैंसर जैसी घातक बीमारियों के खतरे की आशंका निर्मूल बताते हुए कहा कि यह आशंका पूरी तरह शून्य है। गत दिवस भोपाल में मुख्य सचिव ने इस पूरे मामले से जुड़े हर सवाल का जिस तरह सिलसिलेवार तरीके से जवाब दिया वह पीथमपुर में आंदोलन कर रहे लोगों की सारी शंकाओं का समाधान करने के लिए पर्याप्त है। अनुराग जैन ने कहा कि पूरा कचरा इसी ठंड के मौसम में ही जलाया जाएगा बल्कि यह कचरा हर मौसम में जलाया जाएगा और वातावरण पर उसके प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा। यदि किसी मौसम में कचरा जलाने के बाद अध्ययन में वातावरण में हानिकारक तत्वों की अधिकता पाई जाती है तो पूरी प्रक्रिया बदली जाएगी। अनुराग जैन ने इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि कचरा जलाना एक दिन की प्रक्रिया नहीं है । इससे निकलने वाली गैसों का सतत् आकलन होता रहेगा और अगर कोई हानिकारक प्रभाव परिलक्षित हुआ तो इस प्रक्रिया को तुरंत रोक दिया जाएगा। मुख्यमंत्री मोहन यादव और मुख्य सचिव अनुराग जैन ने जिस तरह पीथमपुर के लोगों की सारी शंकाओं का समाधान किया है उसके बाद यह मानना ग़लत नहीं होगा कि पीथमपुर में कचरा निपटान को रोकने के लिए जो आंदोलन प्रारंभ किया गया है उसे जारी रखने का अब कोई औचित्य नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ गलतफहमियों की वजह से पूरे मामले ने अप्रिय मोड़ ले लिया और अनावश्यक विवाद की स्थिति बन गई। इस स्थिति से बचा जा सकता था।