भिंड में पत्रकारों के साथ पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई बर्बरता केवल मारपीट की घटना नहीं है, यह लोकतंत्र की बुनियादी आत्मा—अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता—पर सीधा और शर्मनाक प्रहार है।
पत्रकारों को संवाद के लिए आमंत्रित किया गया, और वहीं उन्हें अपमानित किया गया, गालियाँ दी गईं और लात-घूंसे मारे गए। यह न सिर्फ प्रशासन की संवेदनहीनता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि अगर सच बोलने वाला पत्रकार सुरक्षित नहीं, तो आम जनता की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?
यह हमला केवल अमरकांत सिंह, शशिकांत गोयल और प्रीतम सिंह जैसे पत्रकारों पर नहीं, बल्कि हर उस कलम और आवाज़ पर है जो सत्ता से सवाल करती है।
अब तक न तो दोषी पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया गया और न ही निष्पक्ष जांच शुरू हुई — यह न्यायिक व्यवस्था पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न है।
*मैं प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री से मांग करता हूँ कि—*
* *भिंड SP को तुरंत हटाया जाए*,
* **एक स्वतंत्र SIT गठित की जाए और
* *पीड़ित पत्रकारों को शीघ्र न्याय सुनिश्चित किया जाए।*
यदि आज यह घटना अनदेखी रह जाती है, तो कल हर पत्रकार के लिए सच बोलना और लिखना एक अपराध बन जाएगा।
अगर पत्रकार डर गया, तो जनता अंधेरे में जीने को मजबूर होगी।
हम यह हरगिज़ नहीं होने देंगे।